बिना फल की इच्छा के कोई कर्म क्यों करेगा? शायद इसी सवाल के जवाब में गीता में आगे कहा गया है – न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: (प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना ही पड़ता है। कोई भी शख्स एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।)
धन्यवाद व्यक्त करना, ध्यान केंद्रित करना, और दूसरों की मदद करने का प्रयास करना एक शांत और खुश व्यक्ति के लिए आधार बनता है। लंबे समय तक द्वेष पालना, नकारात्मक विचारों का मनोरंजन करना, और अनैतिक व्यवहार न केवल मन को अशांत करता है बल्कि असंतोष का भी कारण बनता है।
मैं-बुरे कर्मों से आपका read more आने वाला कल बुरा हो जाता है।
यहां यह समझना भी जरूरी है कि भाग्य होता क्या है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो कुछ अप्रत्याशित होने को ही भाग्य कहा जाता है। अच्छा हो तो सौभाग्य, बुरा हो तो दुर्भाग्य। बहुत से लोग मानते हैं कि भाग्य नाम की चीज होती ही नहीं। मनुष्य अपने पुरुषार्थ के बल पर ही भाग्य (तकदीर) का निर्माण करता है। कहा जाता है कि उद्योग करने वाले सिंह के समान पुरुष को लक्ष्मी स्वयं प्राप्त होती है।
यह कलियुग नहीं कर्मयुग है। इसका मतलब भाग्य भी कर्म के आधीन है पर कर्म भाग्य के नहीं।
कर्म ही व्यक्ति के भाग्य और जीवन का निर्माण करते हैं।
रंजीत पासवान जी का एक neutral watch जो अच्छा लगा यहाँ contain कर रहा हूँ:
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एक बूँद के भाग्य में क्या है वो धरा पे गिरकर मिट्टी में मिल जायेगी या सीप में गिर के मोती बन जायेगी ये तभी सुनिश्चित होगा जब वो बादलों को छोड़ने का कर्म करेगी.
मैं-जी हां, गीता में भी लिखा है कि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही मिलता है।
आचार्य जी-बहुत अच्छे, मुझे यह जानकार खुशी हुई की आप गीता में भी विश्वास रखते हैं।
मैं बड़े ही असमंजस में पढ़ गया और कुछ और हिम्मत जुटा कर बोला।
झालावाड़यूट्यूब पर पति को मारने की तरकीब खोजती पत्नी, फिर रात में सोते समय कर दिया बड़ा कांड
अंत में, अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप इसे क्या कहेंगे … “ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “ फैसला आप पर है
Comments on “The 5-Second Trick For भाग्य Vs कर्म”